अर्थ : अलंकारशास्त्र के अनुसार रस के चार अंगों में से एक।
उदाहरण :
अनुभाव रस का बोध कराने वाला गुण तथा कर्म होता है।
अर्थ : स्थायी भाव के बोधन से प्रगट होने वाला शारीरिक और मानसिक भाव।
उदाहरण :
नाट्य प्रयोग में अनुभाव अभिनय से व्यक्त होते हैं।